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सन् हरीशाह जी का है सन् 1942 के जनवरी के महीने में हुआ।
सरकार बाबा हरीशाह जी की माता जी का नाम श्रीमती तारा देवी एवं पिता जी का नाम श्री परमानंद था । एक दिन माता जी के पास एक फकीर आए । उन्होंने माता जी से पूछा कि आप क्या चाहती हो ? माता जी रो पड़ी और कहा कि मेंरी चार बेटियां हैं । फकीर बोलें “माता आप रो मत , खुदा ने चाहा तों आपको दो पुत्र होंगें । पर मेरी भी एक बात याद रखना कि बड़े पुत्र का नाम हरीचंद रखना , छोटे पुत्र का नाम रघुवीरचंद रखना” । ” मैं दोबारा फिर आऊँगा” ,यह कह कर फकीर चले गए। फकीर के कहे अनुसार और खुदा की मेहर से माता जी के घर दो पुत्र पैदा हुए । उनके नाम फकीर के बताए अनुसार रख दिया गया -बड़े बेटे का नाम हरीचंद और छोटें बेटे का नाम रघुवीरचंद रखा । वो फकीर माता जी के पास दोबारा आए और कहा “बेटी पहचाना मुझे ? जैसा मैनें कहा था वैसा ही हुआ ना ।” माता जी नें कहा जी हाँ । माता जी उनके लिए चाय बनाने रसोई में गईं जब चाय ले कर आई तो फकीर वहाँ नही थें, सारे मुह्ल्ले वालो नें ढूँढा पर उनका कहीं पता न चला।
बाबा हरीशाह जी का चालिस दिन चिराग करना-
हरीचंद जी ने अपने मालिक के आदेशानुसार 40 दिन तक चिराग जगाए । चालीसवें दिन जब हरीचंद जी सोए तो अपनी जगह किसी और को लेटा दिया । उस व्यक्ति को सपने में दर्शन हुए । उसने सुबह उठ कर हरीचंद जी को बताया । यह जान कर हरीचंद जी को दुख हुआ । उन्होने दुबारा चालिस दिन चिराग जगाए । चालीस दिन बाद हरीचंद जी को दाता जी के दर्शन हुए । दाता जी ने कहा कि आपके पिता जी का आपके वियोग मे निधन हो चुका है। अब आप दिल्ली से अपने गाँव अम्बोआ (हिमाचल)चले जाओ और अपनी माँ की सेवा करो।
Last updated on 11/01/2019
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Baba Hari Shah Ji
1.1 by ZVASTICA
11/01/2019